गौरा रानी मेला दिखा दूँ हरिद्वार का
॥ भजन ॥
गौरा रानी मेला दिखा दूँ हरिद्वार का।
मेला दिखाये लाऊं कुम्भ नहलाये लाऊं।।
गौरा रानी मेला दिखा दूँ ...
आगे आगे मैं चलूँ मेरे पीछे-पीछे आना,
पैदल पैदल मैं चलूँ और बैल पे तुम चढ़ जाना।
तुझको मुझको कोई न देखे, प्राणी इस संसार का।।
चल गौरा रानी मेला दिखा दूँ ...
लड्डू खालो पूरी खालो और खालो त्रिकोणा,
देसी घी का हलवा खाले स्वाद बड़ा सलोना।
छोटा सा एक टुकडा लेंगे, आम के अचार का।।
चल गौरा रानी मेला दिखा दूँ ...
हरि की पौड़ी पे जा करके, स्नान तेरा करवाऊ
गंगा जी के अंदर जाके गोते खूब लगाऊ।
पुल के उपर चढ़ कर देखें, मेला आर पार का।।
चल गौरा रानी मेला दिखा दूँ ...
चोरो का तुम भय मत करना, कोई न हाथ लगाना,
वृंदावन के सारे अखाड़े, दर्शन करने आये।
यहाँ पे पहरा लगता है, बाँके कृष्ण मुरार का।।
चल गौरा रानी मेला दिखा दूँ ...
॥ समापन ॥
गौरा रानी मेला दिखा दूँ हरिद्वार का
मेला दिखाये लाऊं, कुम्भ नहलाये लाऊं ॥
॥ सार ॥
‘गौरा रानी मेला दिखा दूँ हरिद्वार का’ भजन में हरिद्वार के मेले और कुंभ स्नान की भक्ति भावना को दर्शाया गया है।
यह गीत भक्तों को गंगा स्नान, प्रसाद और हरिद्वार की आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव कराता है।